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My Campus Buddy
Jun 9, 20231 min read
The Best Poetry To Use As Filler During The College Events
My campus buddy has shortlisted the best Poetry to use as filler on stage during college events. Ghazal ( ग़ज़ल ) Sher ( शेर )
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My Campus Buddy
Oct 3, 20211 min read
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा’द
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा’द कितने चुप-चाप से लगते हैं शजर शाम के बा’द इतने चुप-चाप कि रस्ते भी रहेंगे ला-इल्म छोड़ जाएँगे किसी...
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My Campus Buddy
Oct 3, 20211 min read
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की अहल-ए-किताब...
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My Campus Buddy
Oct 3, 20211 min read
मेरे अशआर किसी.. को ना सुनाने देना
मेरे अशआर किसी.. को ना सुनाने देना जब मै दुनिया से चला ..जाऊँ तो जाने देना साथ इनके है बहुत ख़ाक उड़ाई मैंने इन हवाओं को मेरी ख़ाक उड़ाने...
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My Campus Buddy
Sep 28, 20211 min read
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता हमारे दौर में आँसू ज़बाँ नहीं होता जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता ये...
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My Campus Buddy
Sep 23, 20211 min read
अब भला छोड़ के घर क्या करते
अब भला छोड़ के घर क्या करते शाम के वक़्त सफ़र क्या करते तेरी मसरूफ़ियतें जानते हैं अपने आने की ख़बर क्या करते जब सितारे ही नहीं मिल पाए...
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My Campus Buddy
Sep 20, 20211 min read
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तिरी क्या हर शख़्स मिरा साथ निभा...
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My Campus Buddy
Sep 20, 20211 min read
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र...
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My Campus Buddy
Sep 20, 20211 min read
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ जो भी उस पेड़ की...
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My Campus Buddy
Sep 20, 20211 min read
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख-रखाव की...
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