तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा’द
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा’द कितने चुप-चाप से लगते हैं शजर शाम के बा’द इतने चुप-चाप कि रस्ते भी रहेंगे ला-इल्म छोड़ जाएँगे किसी...
तू ने देखा है कभी एक नज़र शाम के बा’द
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
मेरे अशआर किसी.. को ना सुनाने देना
लहू न हो तो क़लम तर्जुमाँ नहीं होता
अब भला छोड़ के घर क्या करते
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है